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उम्मीद -17-Aug-2022

कविता -किसानों की उम्मीद 

प्रीति में चूक नहीं इनके अब उम्मीद का दीप जले कब तक
जीवन बरसे तरसे जीवन नभ में न मेघ घटे अब तक
हे नाथ अनाथ करहु न अब जीवन तो शेष रहे जब तक
जल ही जल है जल थल नभ में फिर भी तड़प रहें अब तक 
अमृत सा बूंद बरस नभ तू घरती चटक रही चट चट
टूटी उम्मीद न आस रही अब, अब टूटी सांस चले कब तक
घनश्याम घटा घनघोर बरस तुझपे आस लगी अब तक
जड़ चेतन शून्य चले बन अब नस-नस सूख चले कब तक
सबकी अपनी एक सीमा फिर हद है उम्मीद करुं कब तक
जब तक सांसे तब तक आशा उम्मीदें पकड़ चलूं कब तक
जीवन जहां उम्मीद वहीं है अब लेकर साथ चलूं कब तक
पानी अब पानी राख मेराअब पानी बिन फिरुं कहां कब तक

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6 Comments

Pankaj Pandey

19-Aug-2022 07:38 AM

👌👌

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shweta soni

19-Aug-2022 06:32 AM

Nice 👍

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Bahut sundar

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